Wednesday, December 28, 2011
Saturday, December 24, 2011
स्वर्गीय हरिवंश-राय बच्चन जी की रचना
स्वर्गीय हरिवंश-राय बच्चन जी की रचना----
जो बीत गया सो बीत गया:
जीवन में एक सितारा था,
माना वह बेहद प्यारा था,
वह डूब गया तो डूब गया,
अंबर के आंगन को देखो,
कितने इसके तारे टूटे,
कितने इसके प्यारे छूटे,
जो छूट गए फ़िर कहाँ मिले,
पर बोलो टूटे तारों पर,
कब अंबर शोक मनाता है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
पर नज़र गई
जो बीत गया सो बीत गया:
जीवन में एक सितारा था,
माना वह बेहद प्यारा था,
वह डूब गया तो डूब गया,
अंबर के आंगन को देखो,
कितने इसके तारे टूटे,
कितने इसके प्यारे छूटे,
जो छूट गए फ़िर कहाँ मिले,
पर बोलो टूटे तारों पर,
कब अंबर शोक मनाता है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
पर नज़र गई
तो "टूटे तारों पर कब अंबर शोक मनाता है "का जवाब लिख दिया ............
अंबर तो नहीं इंसान हैं हम
एहसासों की पहचान हैं हम
एहसासों की पहचान हैं हम
हो भाव यहां झंकार सकल
हो प्रीत यहां फुहार सकल
जो अश्रु उड़ें तूफान सकल
जो विरह तो बेजान सकल
हो प्रीत यहां फुहार सकल
जो अश्रु उड़ें तूफान सकल
जो विरह तो बेजान सकल
पर बात अगर अंबर की हो
तो अंबर की भी हुंकार सुनो
उल्का-पिंडों की राख सुनो
बरखा-बिजुरी का नाद सुनो
चीत्कारों का संवाद सुनो
तो अंबर की भी हुंकार सुनो
उल्का-पिंडों की राख सुनो
बरखा-बिजुरी का नाद सुनो
चीत्कारों का संवाद सुनो
व्योम से गिरते वर्षण से
मेघों-बिजुरी के गर्जन से
वो ह्रदय-राग दुहराता है
अंबर भी शोक मनाता है
अंबर भी शोक मनाता है
"विवेक तिवारी"
मेघों-बिजुरी के गर्जन से
वो ह्रदय-राग दुहराता है
अंबर भी शोक मनाता है
अंबर भी शोक मनाता है
"विवेक तिवारी"
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