Wednesday, October 30, 2019





कभी-कभी दिखता है
किसी सागर तट पर
लहरों के बीच
दिप-दिप करता हुआ
एक चांद का अक्स
बिखरे केश
दीप्त नयन
और एक गरिमामय मुस्कान
इस धरा पर रहती किसी मानुषी की
क्या तुम वसंत की पुत्री हो ?
या फिर चांद का कोई रहस्य ?
"विवेक तिवारी"


वो आँखें
वो हंसी
वो चेहरा
वो शब्द
और उन लटों की सादगी
बहुत अपरिचित है
मेरी हर उदसी से
क्योंकि उनसे रिश्ता है मेरा
बस एक मुस्कुराहट का।
"विवेक तिवारी"