Wednesday, April 11, 2012

किसी की आँखें किसी का जादू किसी के दिल में धडक रहा है

१=ये कौन दुआएं करता हैं 
उम्मीद बंधे सन्नाटों में

शिशिर की सुबह में धूप दिखे
और फूल खिले वीरानों में

ख़्वाब कोई फिर से आए
और महके ख़ुशबू फ़िजाओं में

क्या ख़्वाब कोई फिर आएगा
और प्यार की ख़ुशबू महकेगी 

हाँ ख़्वाब कोई फ़िर आया है
और प्यार की ख़ुशबू महकी है ।
"विवेक तिवारी"
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२=कई दिलकश नज़ारें हैं
उम्मीदों के ठिकानों पर

कुछ ख़्वाबों की ख़ुशबू है
चाहत के मकानों पर

एक भीनी सी महक कोई
मंदिर के तरानों पर

एक तोते की चहक कोई
सावन के फ़सानों पर

तो फिर अब मेरी मोहब्बत में
ये अहसास करोगे तुम
कि ये है रूह का सौंधापन
जो मिलता न दुकानों पर ।
"विवेक तिवारी"
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३=देखा है जिनको ख़्वाबों में हमने 
हक़ीक़त में वो अब नज़र आ रही हैं

धरती पे काली घटा है ये छायी
वो जुल्फ़ों को खोले चली आ रही हैं

चांद की आभा को धूमिल किया है
गज़ब हुस्न से वो कहर ढ़ा रही हैं

बहकने लगा दिल सम्भाले हम कैसे 
वो निग़ाहों से कैसे हंसी जा रही हैं

ऎ मौला मेरे तू मुझको बचाना
वो शमां हैं फिर भी बुझी जा रही हैं
"विवेक तिवारी"
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४=कभी मंदिर की चौखट पे,कभी मस्जिद की गलियों में
दुआएं माँगते लोगों को बहुत हमने देखा है

चलो हमने भी सोचा क्यों न सजदा कर लिया जाये
कई तूफ़ानो से किश्ती निकलते हमने देखा है

यकीं नही था दुआओं में असर भी होता है
पर दुआओं में असर को आज हमने देखा है

जिस चांद के दीदार को दुनियां तरसती थी
उस चांद को जी भर के आज हमने देखा है

यकीन था हमको बहारें फिर से आएंगी
अक्सर हवा का रुख बदलते हमने देखा है।
"विवेक तिवारी"
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५=जो दिल की बात थी मेरे होंठों पे आ गई
वो ख़्वाबों में मेरे आकर कोई सपना जगा गई

बहुत तन्हाइयों में था मेरे ख़्वाबों का कारवाँ
वो तन्हाइयों में आकर मुझे अपना बना गई 

माँगा था मैने रब से उसको गुमाँनों के वास्ते
वो मेरी ज़िन्दगी में आकर मेरी रौनक बढ़ा गई

अब हर तरफ फ़िजा में है ख़ुशबू बहार की
वो वीरानियों में आकर बहारें सजा गई

चाहूँगा इस-कदर उसे मैं इस जहान में
कि महसूस करे वो उसे जिसे किताबें बता गई
"विवेक तिवारी"
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६=मैं उनको देखूं
ख़्वाबों में हर-पल
ख़्वाबों में उनसे
करूं मैं बतियां

मैं उनसे पूछूं
क्यूं है क्या मोहब्ब्त 
वो चुप रहें 
सब बता दे अँखियां

जो मैं हूँ निकलूं
गली से उनकी
हंसे हैं मुझपे
उन्हीं की सखियां

वो कुछ न बोलें
किसी सखी से 
बस हंसती जाएं
उन्ही के सथियां

अब उनकी सखियों
उन्हीं से कह दो
बहुत कशिश है
मिला ले अँखियाँ

जो देर की तो 
हम न मिलेंगें
मिलेंगी उनको
छ्लकती आँखें,तड़पती बतियां।
"विवेक तिवारी"
अमीर खुसरो की रचना"ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल"और आलोक की रचना से प्रेरित मेरी एक रचना। 
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७=हर दिल को क्यूं एक चेहरे से कुछ ऐसी मोहब्बत हो जाती है
जो दिखे-न-वो बेचैनी बढ़ती जो दिखे तो धड़कन बढ़ जाती है

वो जिधर से निकलें उसी जगह पर नज़र हमेशा रहती है
और ये सच है देख-के उनको सारी जन्नत मिल जाती है

जाने कितनी बातें उनसे जुबाँ नहीं कुछ कह पाती है
और आंखों-ही-आंखों में पर कितनी बातें हो जाती हैं

फिर उनके बिन एक-पल भी जीना कितना भारी लगता है
और उनके एक साथ की ख़ातिर कितनी दुआएं हो जाती हैं

पर मैंने सुना है अपनी मोहब्बत किसी-किसी को मिलती है
और भूली-बिसरी यादों के संग तन्हाई बस रह जाती है

फिर ख़ुद से कितने वादे करके उन्हें भुलाना पड़ता है 
पर दिल के एक कोने में उनकी तस्वीरें तो रह जाती हैं
"विवेक तिवारी"
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८=भीड़ों में दिखती थी सबसे अलग वो
तो फिर धड़कने लगा दिल धड़कते-धड़कते

जो उनकी निग़ाहों में देखा तो नज़रें हंसी थी
तो फिर मचलने लगा दिल मचलते-मचलते

कई वादे किये थे जो उसने हसीं थे
तो फिर बहकने लगा दिल बहकते-बहकते

फिर वर्षों की चाहत को उसने भुलाया
तो फिर तड़पने लगा दिल तड़पते-तड़पते 

यारों मांगी हैं तुमने जो दिल से दुआएं 
तो फिर संभल जायेगा दिल संभलते-संभलते
"विवेक तिवारी"
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९=कभी-कभी लगता है

एक ख़ूबसूरत सा एहसास हो तुम
खुली आँखों का देखा ख़्वाब हो तुम 
मौसम में आयी बहार हो तुम
पावस की प्रथम फुहार हो तुम
रागों में राग मल्हार हो तुम

इक चांद सी प्यारी सूरत हो
गीतों की मेरी जान हो तुम
मंदिर का कोई तरन्नुम हो
मस्जिद की कोई अज़ान हो तुम

और कभी-कभी लगता है
तुमसे बिछड़ने का कोई रंजो-गम नही

बस बिछड़ा कोई ख़्वाब हो तुम
जीवन की एक हार हो तुम
किस्मत पे एक सवाल हो तुम
भँवरों का इक अहसास हो तुम
मेरे गीतों का बस अधिकार हो तुम

जन्मों-जन्मों का अंतर हो
प्यासे दिल की अरदास हो तुम
गीतों की मेरी उदासी हो
पर दिल के कितने पास हो तुम।
"विवेक तिवारी"
अरदास= प्रार्थना।
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१०=ज़िक्र हुआ जब आंखों का एक नाम तुम्हारा आया है
बात चली जब चाहत की एक नाम हमारा आया है
उम्मीद बंधी सन्नाटॊं में पैगाम तुम्हारा आया है 
ये किसने दुआयें मांगी है जो ख़्वाब तुम्हारा आया है
"विवेक तिवारी"
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११=ये दिल की धड़कनें कैसी ये दिल की कैसी हसरत है
वो आँखें-आँखों में रहती ये उनसे कैसी निस्बत है
नहीं जानता क्या है तुममें और क्या ख़्वाबों की किस्मत है 
और क्या मैंने जितना प्यार किया है तुमको उतनी मोहब्बत है ?
"विवेक तिवारी"
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१२=तुम मुझसे दूर हो तो क्या मुझे तुमसे मोहब्बत है
ज़ुबां ख़ामोश है मेरी मगर ये दिल की हसरत है
किसी दिन तुम अकेले में ये खुद से पूछ भी लेना
किसे तुम चाहती हो और किसे तुमसे मोहब्बत है
"विवेक तिवारी"
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१३=हर मन्दिर में तुमको मांगा,मांगा तुमको मस्जिद में
गलियों-गलियों खोज रहा था,पाया तुमको बस्ती में
जाने कितने गीत लिखे हैं सनम तुम्हारी चाहत में
फिर क्यूं तुम अब महक रहे हो और किसी के गुलशन में
"विवेक तिवारी"
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१४=कई वर्षों की चाहत को कोई कैसे भुलायेगा
ये है धागा नहीं कच्चा जो पल में टूट जायेगा
इस मौसम की हलचल से भला क्या फ़र्क पड़ता है
जो तुझको देखना चाहे वो मीलों चल के आयेगा।
"विवेक तिवारी"
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१५=भरी लाखों की महफिल में तेरा चेहरा नहीं मिलता
जो तेरे संग गुज़रेगा वो एक लम्हा नहीं मिलता
अधूरे पायदानों पर खड़ी ये ज़िन्दगी कहती
यहाँ अब जिस्म मिलते हैं दिल सच्चा नहीं मिलता
"विवेक तिवारी"
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१६=कोई ऐसा भी दिन गुज़रे जो तेरी याद ना आए
तड़प कर मैंने जो लिखा वो कोई जान ना पाए
ख़ुदा ये इल्तिज़ा मेरी है कुछ ऐसा करिश्मा कर
जो सच्ची मोहब्बत हो तो कोई दूर ना जाए
"विवेक तिवारी"
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१७=जो तेरी राह से गुजरे नहीं वो राह मिलती है
जो दिल में झांक कर देखूँ तो तेरी चाह मिलती है
खुदा ये बरकते कैसी तेरा कैसा करिश्मा है
जो मैं कुछ दर्द कहता हूँ तो मुझको "वाह" मिलती है
"विवेक तिवारी"
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१८=जाने कितनी बार मरा हूँ जाने कितने जन्म लिये
एक बस तेरे प्यार की खातिर जानें क्या-२ करम किये
आँखों में तेरी आँखें हैं गीतों में दिल की धड़कन 
सब कहते हैं प्यार में पागल भटक रहा है तेरे लिये
"विवेक तिवारी"
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१९=अकेले में पुरानी चिट्ठियाँ अब कौन पढ़ता है 
मोहब्बत के लिये निर्जल यहाँ अब कौन रहता है 
गिरेबां झांककर अपना यहाँ अब कौन चलता है 
सभी हैं लूटने वाले शराफत कौन करता है
"विवेक तिवारी"
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२०=बहुत बन-सँवर के आते हैं वो मेरे सामनें लेकिन
मगर ये दिल मेरा अटका उनकी आँखों में रहता है
मैं चुप खड़े होकर के उनको देखना चाहूं
फिर ध्यान उनका क्यों मेरी बातों में रहता है 
"विवेक तिवारी"
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२१=गहराई न जान के,ये दुनिया क्या समझती है
ये हो गया शायर,मुझे शायर समझती है

साहिल पे खड़ी रहकर वो मुझको नापना चाहे
जो अंदर बुलाऊं तो उसे खतरा समझती है

हक़ीक़त जो बयां कर दूँ तो वो समझ नहीं पाती
कोई जब झूठ बोले तो उसे सच्चा समझती है

बुलंदी पा-के-भी इन्सांन को परख नहीं पाती
वो फ़रेब के वादों को बस अपना समझती है

किसी की रूह की क़ीमत वो लगा नहीं सकती
पर अशआर को बिकने के बस लायक समझती है

गले मिलने के बाद भी जहाँ पे दिल नहीं मिलते
ऐसे मुहब्बत के वीरानों को वो महफिल समझती है
"विवेक तिवारी"
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२२=मैं अक्सर सोचता रहता लिखावट हो तो कैसी हो
शौहरत के लिये हर कोई यहाँ-पे लिखता है लेकिन 
लिखे जब प्यार में कोई लिखावट हो तो कैसी हो

मैं अक्सर सोचता रहता बुलंदी हो तो कैसी हो
बुलंदी पाने के बाद लोग बस-जाते दिलों में हैं लेकिन 
जो बिना शौहरत बसे दिल में बुलंदी हो तो कैसी हो

मैं अक्सर सोचता रहता इबादत हो तो कैसी हो
न बस मंदिर के ही अन्दर न अजानों तक लेकिन
खुदा जो हर जगह दिख जाये इबादत हो तो कैसी हो

मैं अक्सर सोचता रहता बारिश हो तो कैसी हो
ये बारिश तन भिगोती है लेकिन
जो बारिश मन भिगो डाले वो बारिश हो तो कैसी हो

मैं अक्सर सोचता रहता मोहब्बत हो तो कैसी हो
सब अपनी मोहब्बत को पाकर जीते हैं लेकिन 
जो बिना पाए उसे जी ले मोहब्बत हो तो कैसी हो

मैं अक्सर सोचता रहता जुदाई हो तो कैसी हो
मोहब्बत में बिछ्ड़ कर लोग तन्हा रोते हैं लेकिन
जो कोई सरे-आम रोये तो जुदाई हो तो कैसी हो
"विवेक तिवारी"
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२३=उन्हें क्या बताऊँ मैं कि कितनी मोहब्बत है
बहुत ज़्यादा मोहब्बत में कोई कुछ कह नहीं पाता

मुझे है आरजू कितनी उस महताब* की अपने
ये मौला जानता मेरा जिसे मैं कह नहीं पाता

वो जब सामने रहते तो लब ख़ामोश रहते हैं
और इस दिल का सूना-पन मैं उनसे कह नहीं पाता

जो मुझसे दूर जायें वो भँवर आते हैं जीवन में
बहुत बेचैनियाँ बढ़ती जिसे मैं कह नहीं पाता

इक दिन सोंच बैठा था कि ये वीरानियाँ कह-दूँ
पर ये वक़्त कैसा है जो दिल कुछ कह नहीं पाता

अब बस ये तमन्ना है कि मौला ऐसी किस्मत दे
कि तू वो खुद कहे मुझसे जिसे मैं कह नहीं पाता
महताब*=चांद
"विवेक तिवारी"
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२४=जो चाहो कभी-भी तुम,मुझे तुम आज़मां लेना
मेरे इस प्रेम की बोली,लगा पाओ लगा लेना
बहारें तुमसे पूछेंगी, मेरे बारे में जो दिलबर 
मेरी वफ़ा का एक किस्सा ,सुना पाओ सुना देना

जो चाहो कभी-भी तुम.................
मैं खुद से रोज करता हूँ, तुम्हारी बात करता हूँ
तुम अगर जो सुन पाओ, बता पाओ बता देना
मैं प्यासा हूँ बहुत दिन से, मेरी ये रूह प्यासी है
मेरे दिलबर जो पानी हो,बुझा पाओ बुझा देना 

जो चाहो कभी-भी तुम........................
ये आँखें याद करती है, सदा दिन रात बहती है 
मेरे अश्कों की कीमत जो, लगा पाओ लगा देना

जो चाहो कभी-भी तुम....................
वो सारे प्यार के किस्से,वो कैसे छूट जाते हैं
वो वादे सात फेरों के,वो कैसे टूट जाते है
तुम्हें जो याद सब आये, बता पाओ बता देना
जो चाहो कभी-भी तुम,मुझे तुम आज़मां लेना
......................................."विवेक तिवारी"