Tuesday, December 20, 2011

नए युग
नई सभ्यता
विचार और दर्शन में
तुम्हें शायद वो भले न मिले
पर मुझे तो 
तुम्हारे चारों ओर
पीली सरसों
हरे धान के खेतों
अविरल बहते झरनों
और पर्वतों-मैदानों-घाटों में उमड़ते बादलों पर
क़दम-क़दम पर मिल ही जाती हैं
बारिश की बूँदों से लदी
कुछ पंखुड़ियाँ गुलाब की ।
"विवेक तिवारी"

No comments:

Post a Comment